सरायकेला Sanjay । सोलह कलाओं की नगरी कही जाने वाली सरायकेला के रीति रिवाज और परंपराएं भी प्रकृति से जुड़ी हुई हैं। उड़ीसा की परंपरागत पोखाल दिवस को सोमवार के दिन विधि विधान के साथ मनाया गया। इस अवसर पर रविवार की रात को ही चावल पकाकर भात को पानी में डालकर रख दिया गया। इस प्रकार शनिवार की सुबह तैयार हुए पोखाल भात का सेवन सभी इनग्रेडिएंट के साथ किया गया। इससे पूर्व संस्कार परंपरा के अनुसार सभी ने स्नान ध्यान कर अपने इष्ट की आराधना की।
और सामूहिक रूप बैठकर पोखाल भात का सेवन किया। जिसमें सामर्थ्य अनुसार परिवारों में पोखाल भात के साथ दही, करी पत्ता, बड़ी चुरा, खीरा सलाद, टमाटर, प्याज, नींबू, तला बड़ी, पकाया हुआ भिंडी, सुखा मछली, सब्जी, भुजिया और पापड़ जैसे अन्य इनग्रेडिएंट भी शामिल किए गए थे। इसके पीछे मान्यता रही है कि गर्मी के प्रारंभ के साथ ही 20 मार्च को पोखाल दिवस मनाया जाता है। जिसके बाद पूरे गर्मी के दिनों में पोखाल भात का सेवन किया जाता है। जो गर्मी के प्रभाव से शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है। साथ ही पाचन शक्ति और पेट को स्वस्थ बनाए रखता है। बताया जाता है कि इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता भी रही है।
