दीपावली पर दीयों की मांग को लेकर रेस हुआ कुम्हारों के चाक का पहिया, दो साल कोरोना की मार के बाद इस वर्ष
मौसम की बेरुखी के बीच भी अच्छे रोजगार की है उम्मीद….
सरायकेला Sanjay : आधुनिकता के इस दौर में चकाचौंध कर देने वाली सीरीज लाईट के बीच मिट्टी के दियों का अपना एक अलग ही महत्व है. प्रकाश का पर्व दीपावली में चाहे जितना भी सीरीज लाईट का डेकोरेशन कर लें किंतु मिट्टी के दिए जलाए बिना यह पर्व पूरा नहीं होता. आधुनिक लाइटों के बीच मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा रही है. दीपावली आने में अब कुछ दिन ही बचे हैं. दीपावली पर्व को देखते हुए कुम्हार समाज के चाक के पहिए अब रेस हो चले हैं। मिट्टी से अपने लिए सपने और खरीददारों के लिए आकार गढ़ने वाले कुमार समाज के लोग मिट्टी के दीये, खिलौने, मटकी, कलश और मूर्तियां बनाने में लग गए हैं. दुर्गापूजा के बाद से आए मौसम में बदलाव के कारण क्षेत्र अंतर्गत हो रही छिट पुट बारिश से कुम्हार समाज के लोग परेशान है. मौसम के अनुकूल नहीं रहने से मिट्टी से बने समान को सुखाने में और भट्टी तैयार करने में काफी कठिनाई हो रही है. मौसम की बेरुखी के कारण कुम्हार समाज को दुगना मेहनत करना पड़ रहा है.
— दीपावली को लेकर कुम्हार समाज में काफी उत्साह है :-
प्रकाश का पर्व दीपावली को लेकर सरायकेला का कुम्हार समाज काफी उत्साहित है. दो वर्षो के कोरोना काल के बाद इस बार की दीपावली में अच्छी कमाई होने की उम्मीद है. सरायकेला नगर क्षेत्र के थाना चौक, हंसाऊडी, देउरीडीह जेल रोड सहित आस पास के गांव के कुम्हार समाज के लोग दीपावली को तैयारियों में जुट गए हैं. उनका मानना है कि दीपावली में अभी कुछ समय बाकी है। पहले से सभी तैयारियां कर लेने पर मौसम के सही होते ही भट्टी तैयार किया जा सकेगा.
— 800 से 1000 रुपए प्रति ट्रैक्टर के हिसाब से खरीदी जाती है मिट्टी :-
मिट्टी के बर्तन आदि बनाने के लिए कुम्हार लोग मिट्टी खरीद कर मंगाते है. जिसके लिए उन्हें प्रति ट्रेक्टर 800 रुपए देना पड़ता है. मिट्टी के बरतन बनाने के लिए सरायकेला के कुम्हार को तीन जगहों से मिट्टी मंगवानी पड़ती है. जिसके तहत दीये और छोटे समान बनाने के लिए पांड्रा गांव से, कढ़ाई और बड़े खिलौने बनाने के लिए कुदरसाई से तथा दोनो मिट्टी में मिलाने के लिए पाटाहेसल से चीटा मिट्टी मंगाई जाती है.
चाक से कुम्हार राकेश प्रजापति की मार्मिक अपील :-
सरायकेला के प्रगतिशील युवा कुम्हार राकेश प्रजापति बताते हैं कि मिट्टी तैयार कर और चाक चला कर मिट्टी के समान की आकृति गढ़ना और फिर उसे रंग कर तैयार करते हुए पकाना एक बेहद ही मेहनतकश और समय लगने वाला कार्य है। जिसमें दीपावली के लिए दीप हो या अन्य सामग्री तैयार करने में लगभग 1 सप्ताह का समय लग जाता है। इसके लिए उचित मिट्टी का चुनाव, जलावन के लिए लकड़ी और रंगने के लिए रंग महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा है कि कुम्हारों को अपने रोजगार के लिए साल में दीपावली महत्वपूर्ण सीजन के तौर पर आता है। जिसमें बीते 2 वर्ष कुम्हारों के रोजगार पर कोरोना का कहर रहा। इस वर्ष मौसम की बेरुखी बनी हुई है। बावजूद इसके दीपावली बाजार में मिट्टी से बने दीयों और अन्य सामग्रियों की मांग को लेकर अच्छे रोजगार की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि एक कुम्हार चाक चला कर अपने परिवार के लिए उम्मीद और खरीदारों के लिए उनकी चाहत को गढ़ने का काम करता है। उन्होंने अपील की है कि परंपरा और संस्कारों का निर्वाह करते हुए सभी जन इस दीपावली अपने-अपने घरों में मिट्टी के दीप जलाएं। ताकि पूजा संस्कार के साथ साथ कुम्हार परिवारों के उम्मीदों को भी इस वर्ष खुशहाली मिल सके।

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