सरायकेला। ग्रहों की चाल और उनके दोष से मुक्ति के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं। इसी प्रकार आदिवासी समाज में ग्रहों के कष्टकारी प्रभाव से मुक्ति के लिए “सेता आंदी” की एक प्राचीन परंपरा है। जो आज भी विभिन्न परंपरागत आदिवासी परिवारों में यथावत प्रचलन में है। जिसमें 5 साल से कम उम्र के बच्चों में ग्रहों के दोष निवारण के लिए उनका प्रथम विवाह कुत्ता या कुत्तिया से करने की परंपरा है। आखान यात्रा के दूसरे दिन पर आयोजित होने वाली उक्त सेता आंदी परंपरा के तहत सोमवार को साहेबगंज के पोड़ाडीहा में पुजारी नाया लाको सूरेन द्वारा एक 3 वर्षीय लड़के की सेता आंदी कराई गई। इसी प्रकार शत्रुसाल गांव में भी पुजारी नाया राऊतु सामड द्वारा शादी कराई गई।
क्या है मान्यता:-
मान्यता है कि जिस बच्चे के प्रथम दांत ऊपर के निकलते हैं। उसके जीवन के लिए बेहद ही खराब ग्रह दोष होता है। जिसके निवारण के लिए सेता आंदी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसके तहत विवाह के सभी विधि विधान के साथ 5 वर्ष से कम उम्र में सहाड़ा पेड़ के नीचे संबंधित बालक या बालिका की पहली शादी कुत्ता या कुतिया से कराया जाता है। जिससे सभी ग्रह दोष खत्म हो जाने की मान्यता है।
विवाह के सभी रस्मो का होता है पालन:-
सेता आंदी विवाह परंपरा में विवाह के सभी रस्मों का पालन हर्षोल्लास के साथ किया जाता है। जिसमें मादल की थाप पर नाच गाने के साथ साथ प्रीतिभोज का भी आयोजन ग्रामीणों के बीच किया जाता है। उक्त जानकारी देते हुए मुड़कुम पंचायत के पूर्व मुखिया सह आदिवासी हो समाज महासभा के जिलाध्यक्ष गणेश गागराई ने बताया कि वैसे बच्चों में ग्रह दोष निवारण के लिए सेता आंदी की परंपरा अति मान्य है। इस दौरान सामान्य विवाह परंपरा के सभी नियमों का पालन करते हुए हर्षोल्लास के साथ सेता आंदी विवाह परंपरा संपन्न कराया जाता है।
